भारत में ब्रिटिश राज के अंतिम समय में जब औद्योगिक ढांचा खड़ा करने का विशाल कार्य देश के सामने था उस समय इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया) ने ऐसे संस्थान के संविधान का प्रथम मसौदा तैयार किया था जो राष्ट्रीय मानक बनाने का कार्य करे। इसके परिणामस्वरूप उद्योग एवं आपूर्ति विभाग ने 3 सितम्बर 1946 को एक ज्ञापन निकाला जिसमें ‘’भारतीय मानक संस्थान’’ नाम के संगठन की स्थापना की औपचारिक घोघणा की गई। भारतीय मानक संस्थान (आईएसआई) 06 जनवरी 1947 को अस्तित्व में आया और जून 1947 को डा लाल सी वर्मन ने इसके पहले निदेशक का कार्यभार संभाला।
अपने आरंभिक वर्षो में संगठन ने मानकीकरण गतिविधि पर ध्यान दिया। आम उपभोक्ताओं तक मानकीकरण का लाभ पहुंचाने के लिए भारतीय मानक संस्थान ने भारतीय मानक संस्थान (प्रमाणन मुहर) अधिनियम 1952 के अंतर्गत प्रमाणन मुहर योजना आरंभ की। यह योजना जो कि औपचारिक रूप से आईएसआई ने 1955-56 में आरंभ की थी, इससे उन निर्माताओं को लाइसेंस प्रदान किए जाते हैं जिनके उत्पाद भारतीय मानक के अनुरूप होते हैं और वे अपने उत्पादों पर आईएसआई मुहर लगा सकते हैं। प्रमाणन मुहर योजना की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए 1963 में प्रयोगशालातंत्र स्थापित किया गया। उत्पाद प्रमाणन का प्रचालन भारतीय मानक संस्थान (प्रमाणन मुहर) अधिनियम 1952 के अंतर्गत किया जाता था जबकि मानकों का निर्धारण तथा अन्य संबंधित कार्य किसी कानून के अधीन नहीं था, इसलिए इसके लिए 26 नवम्बर 1986 को संसद में एक बिल रखा गया।
इस प्रकार संसद के अधिनियम दिनांक 26 नवम्बर 1986 के द्वारा 01 अप्रैल 1987 को भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) अस्तित्व में आया जिससे उसका कार्यक्षेत्र व्यापक हुआ और उसे पूर्ववर्ती स्टाफ, देयताएं और प्रकार्य मिले। इस परिवर्तन के द्वारा सरकार ने गुणतापूर्ण संस्कृति,सजगता तथा राष्ट्रीय मानकों के निर्धारण एवं क्रियान्वयन में उपभोक्ताओं की अधिक भागीदारी पर बल दिया।
ब्यूरो कॉरपोरेट निकाय है जिसमें 25 केन्द्र और राज्य सरकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले 25 सदस्य हैं जिसमें संसद सदस्य, उद्योग, वैज्ञानिक एवं अनुसंधान संगठन तथा व्यावसायिक निकायों के प्रतिनिधि ; केन्द्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण् मंत्री इसकेअध्यक्ष और उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण् राज्य मंत्री उपाध्यक्ष हैं।
Last Updated on December 11, 2020